डॉ शंकर शेष
बहु आयामी व्यक्तिमत्व के धनी डॉ शंकर शेष का लेखन कविता से प्रारंभ हुआ। उस समय वे आठवीं कक्षा के छात्र थे। देश भक्ति की इस कविता पर उन्हें पुरस्कार भी मिला। वे मेधावी छात्र थे। गणित और विज्ञान में खास रूचि नहीं थी। कविता लिखते रहे और स्कूल के कार्यक्रमों में सुनाते रहे।
कॉलेज में प्रवेश के साथ लेखन में रूचि बढ़ी। उनके निबंध बड़े पसंद किये जाते थे। नागपुर में कवि विकसित हुआ। ‘मित्र के नाम पाती’ कविता प्रसिद्ध हुई। कवि सम्मेलनों में भी सफल हुए। आकाशवाणी के वे लोकप्रिय कलाकार थे। रेडियो नाटक में अभिनय भी किया। प्रथम नाटक लिखा मूर्त्तिकार। उन्हीं दिनों आंचलिक उपन्यास लिखा ‘तेंदु के पत्ते’ जो छत्तीसगढ़ की पृश्ठभूमि पर था। अन्य उपन्यास थे चेतना, धर्मक्षेत्र कुरूक्षेत्रे’।