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डॉ शंकर शेष

बहु आयामी व्यक्तिमत्व के धनी डॉ शंकर शेष का लेखन कविता से प्रारंभ हुआ। उस समय वे आठवीं कक्षा के छात्र थे। देश भक्ति की इस कविता पर उन्हें पुरस्कार भी मिला। वे मेधावी छात्र थे। गणित और विज्ञान में खास रूचि नहीं थी। कविता लिखते रहे और स्कूल के कार्यक्रमों में सुनाते रहे।

कॉलेज में प्रवेश के साथ लेखन में रूचि बढ़ी। उनके निबंध बड़े पसंद किये जाते थे। नागपुर में कवि विकसित हुआ। ‘मित्र के नाम पाती’ कविता प्रसिद्ध हुई। कवि सम्मेलनों में भी सफल हुए। आकाशवाणी के वे लोकप्रिय कलाकार थे। रेडियो नाटक में अभिनय भी किया। प्रथम नाटक लिखा मूर्तिकार। उन्हीं दिनों आंचलिक उपन्यास लिखा ‘तेंदु के पत्ते’ जो छत्तीसगढ़ की पृष्टभूमि पर था। अन्य उपन्यास थे चेतना, धर्मक्षेत्रे-कुरूक्षेत्रे’।

छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी से लगाव था। छत्तीसगढ़ी का व्याकरण लिखा। इसी तरह भाषा विज्ञान में एम.ए. करते समय ‘टुलु’ का अध्ययन कर उस पर पुस्तक लिखी। उसकी पीएच.डी. ‘हिन्दी मराठी कथा साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन’ शोधार्थियों के लिए उपयोगी थी, किन्तु प्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। रचनावली में उसका समावेश किया गया है। उन्होंने अपना ध्यान नाटक लेखन पर केन्द्रित किया। बच्चों के नाटकों का अनुवाद किया - ‘अपना हाथ जगन्नाथ’, ‘एक और गार्वो’, ‘चल मेरे कद्दू’। उनके कई नाटक मराठी, तेलगु, सिंधी, तमिल, गुजराती में अनुवादित हुए। उनमें से कुछ प्रकाशित हुए हैं। लगभग सभी विभिन्न भाषाओं में भी मंचित हुए हैं।

कुछ नाटक जैसे एक और ‘द्रोणाचार्य’ ‘घरौंदा’ आदि बी.ए., एम.ए. के पाठयक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों में लगाये गये हैं। एक दर्जन से अधिक लोगों ने उनके साहित्य पर पीएच.डी. पाई है। उनके साहित्य के कई आयाम उन्होंने स्वयं अनुभव कर विश्लेषित किए हैं।

उनके नाटक मंच पर अत्यधिक लोकप्रिय हुए। उसी प्रकार आकाशवाणी-दूरदर्शन पर भी चर्चित रहे। दूरदर्शन के लिए खास लिखा गया पहला नाटक था ‘चेहरे’ जो मुंबई दूरदर्शन से वीरेन्द्र शर्मा के निर्देशन में प्रसारित हुआ और चर्चित हुआ।

उनके नाटक नाटय जगत के प्रसिद्ध निर्देशक में से कई निर्देशकों ने किए। जैसे स्वर्गीय बी.वी. कारंथ, स्वर्गीय अरविंद देशपांडे, सत्यदेव दुबे, मुश्ताक काक, अशोक गोस्वामी, विनायक चासकर, के.के. मेहता इत्यादि। (सबका नाम देना संभव नहीं)